लोगों की राय

मनोरंजक कथाएँ >> लालची बुढ़िया

लालची बुढ़िया

दिनेश चमोला

प्रकाशक : सुयोग्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4486
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

185 पाठक हैं

किसी शहर में एक बुढ़िया रहती थी। वह बहुत दयालु थी। वह जितनी दयालु थी, उससे अधिक लालची भी थी। पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम करती थी। इसलिए बच्चे व चिड़ियों को वह अच्छा-अच्छा दाना खाने को देती थी।

Lalchi Budhiya A Hindi Book by Denesh Chmola

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लालची बुढ़िया

किसी शहर में एक बुढ़िया रहती थी। वह बहुत दयालु थी। वह जितनी दयालु थी, उससे अधिक लालची भी थी। पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम करती थी। इसलिए बच्चे व चिड़ियों को वह अच्छा-अच्छा दाना खाने को देती थी।

पशुओं व मवेशियों के लिए घास-चारा लेने बराबर जंगल आया करती। घर से लेकर जंगल तक बुढ़िया की खास पहचान थी। जहाँ दूसरे लोगों को देखकर जंगल के जीव-जन्तु बिदकने लगते तो बुढ़िया को देखकर वे प्रसन्नता से उसके नजदीक आकर पसर जाते। यह देख बुढ़िया बहुत प्रसन्न होती।

एक दिन दोपहर की धूप में बुढ़िया जंगल से घास-चारा लेकर लौट रही थी कि उसे बहुत थकान व प्यास लगी। उसने घनी छाया वाला एक पेड़ देखा। पेड़ हरे-भरे पत्तों से लदा था। उसने अपना घास का बोझा नीचे रखा व थकान मिटाने के लिए पेड़ के तने से सटकर बैठ गई। थकान इतनी तेज थी कि पलक झपकते ही उसे नींद आ गईं।

कुछ देर सोने के बाद वह उठी तो उबासी लिये खुले मुँह से वह घने पेड़ की ओर ताकने लगी। उसे लगा कि थकान तो मिट गई है। लेकिन प्यास अभी भी तेज है। तभी उसके खुले मुँह में एक ही साथ कई-कई शहद की बूँदें आ गिरीं। वह हैरान हो गई कि शहद की बूँदों के मुँह में गिरते ही प्यास नौ दो ग्यारह हो गई। उसने ऊपर देखा तो वहाँ बहुत बड़ा मधुमक्खियों का छत्ता था।

बुढ़िया शाम को घर लौटी तो शहद की बूँदों की याद कर प्रसन्न हुई। वह बहुत ही लालची थी। उसके मन में कई प्रकार के लालच आ गए। वह सोचने लगी, ‘अवश्य वह घनी छाया वाला पेड़ जादुई पेड़ होगा जिससे उसका भाग्योदय हो जाएगा।’
अब वह जैसे-तैसे रात काट लेने की बात सोचने लगी।


प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book